बूझो तो जानें… राजनीति में ‘डीएनए’ का क्‍या रोल है?

पैतृक या वंशानुगत संबंधों को स्‍थापित करने में तो डीएनए की भूमिका निर्विवाद है, लेकिन मैं आज तक नहीं समझ पाया कि राजनीति में ‘डीएनए’ का क्‍या रोल है? क्‍योंकि चिकित्‍सा और अपराधशास्‍त्र के अलावा हमारे यहां राजनीति में इसका भरपूर इस्‍तेमाल होता रहता है, और चुनाव के दिनों में तो यह कुछ ज्‍यादा ही बढ़ जाता है।
डीएनए की बात इसलिए उठी कि पिछले दिनों मध्‍यप्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष कमलनाथ ने बीजेपी के डीएनए पर सवाल उठाया। पार्टी के राज्‍यसभा सदस्‍य राजमणि पटेल द्वारा की गई 40 दिन की ‘सत्‍ता बदलो संविधान बचाओ जनजागरण यात्रा’ का समापन करते हुए कमलनाथ ने मध्‍यप्रदेश विधानसभा चुनाव की राजनीतिक हलचल में भी इस शब्‍द को घसीट लिया।
उन्‍होंने कहा- ‘’कांग्रेस का डीएनए क्‍या है? कांग्रेस की नीति है, संविधान है, नीयत है। वो (भाजपा) बोल सकते हैं, बात कर सकते हैं, भाषण दे सकते हैं… उनके (भाजपा) डीएनए में खोट है। ये बात हमें जनता तक पहुंचाना होगी।‘’
और जब बात डीएनए तक पहुंच गई तो भाजपा का जवाब भी लाजमी था। प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष राकेशसिंह ने कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा पहुंचकर इसका जवाब दिया। उन्‍होंने वहां कहा- ‘’हमारे डीएनए में खोट बताने वालों तुम्हारी तो उत्पत्ति में ही खोट है, क्योंकि यह सारी दुनिया जानती है कि स्वतंत्रता आंदोलन की समाप्ति के बाद महात्मा गांधी ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अब कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहिए…’’
भाजपा अध्‍यक्ष ने कहा- ‘’गांधीजी जानते थे कि कांग्रेस के लोग सत्ता में आने के बाद स्वतंत्रता के नाम पर जनता का भावनात्मक शोषण करेंगे, लेकिन कांग्रेस के लोगों ने वोटों के लालच में पूज्य बापू जी की भी नहीं सुनी और हम सबने देखा कि झूठे नारे दे-देकर कांग्रेस ने देश को किस प्रकार बरसों तक लूटा है… जो लोग हमारे डीएनए पर सवाल उठा रहे है उन्हें 2018 और 2019 में छिंदवाड़ा की जनता जवाब देगी, वे शायद 2019 के चुनाव के बाद कुछ बोलने की स्थिति में ही न रहें…’’
यानी कमलनाथ ने भाजपा के डीएनए में खोट बताई तो राकेशसिंह ने कांग्रेस की उत्‍पत्ति पर ही सवाल उठा दिया। उत्‍पत्ति संबंधी इस बयान का अभी कांग्रेस या कमलनाथ की ओर से कोई जवाब नहीं आया है लेकिन ऐसा लगता है कि मनुष्‍य के क्रमिक विकास की तरह शुरू हुई इस चुनावी गाथा में अभी बहुत सारे अवतार सामने आने बाकी हैं।
पर मूल सवाल ये है कि ये राजनेता चुनाव में एक दूसरे का या एक दूसरे की पार्टी का डीएनए क्‍यों बीच में लाते हैं? आपको याद होगा ढाई साल पहले बिहार चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश के डीएनए पर सवाल उठाते हुए कहा था- ‘’ऐसा लगता है कि उनके (नीतीश) डीएनए में कोई समस्या है, क्योंकि लोकतंत्र का डीएनए ऐसा नहीं होता। लोकतंत्र में आप अपने विरोधियों का भी सम्मान करते हैं।‘’
मोदीजी के इस बयान से बिहार चुनाव का माहौल खासा गरमा गया था। नीतीश ने यह कहकर पलटवार किया था कि ‘’उन्होंने मेरे डीएनए को गड़बड़ बताकर वस्तुत: पूरे बिहार को गाली दी है, क्‍योंकि मेरा और बिहार का डीएनए एक है। बिहारियों के डीएनए में परिश्रम है। हमारा अतीत गौरवशाली है। ऐसे में प्रधानमंत्री को करोड़ों बिहारियों की भावना को ठेस पहुंचाने वाला अपना बयान वापस लेना ही पड़ेगा।‘’
नीतीश ने इस आरोप को एक अवसर की तरह लपकते हुए कहा था- ‘’हम उनको डीएनए टेस्ट के लिए 50 लाख सैंपल भेजेंगे। हमारे डीएनए में गड़बड़ी दिख रही है, तो जांच करा लें। इसका खर्च उन्हें ही उठाना पड़ेगा। ऐसी बातों से श्रेष्ठ पद की गरिमा और राजनीति के स्तर को गिराया जा रहा है।‘’
इसके बाद लाखों की संख्‍या में बिहारियों ने अपने बाल और नाखून के सैंपल प्रधानमंत्री कार्यालय को पोस्‍ट किए थे। डाक विभाग ने ऐसे कई थैले प्रधानमंत्री कार्यालय में पहुंचाए थे। हालांकि चुनाव के बाद यह किसी को पता नहीं चल पाया कि देश में ‘स्‍वच्‍छता अभियान’ चलाने वाले प्रधानमंत्री के कार्यालय ने बिहारी अस्मिता से जुड़ी इस अमानत का क्‍या किया?
हाल के वर्षों में डीएनए से जुड़ा दूसरा चर्चित मामला उत्‍तरप्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री और वरिष्‍ठ राजनेता नारायणदत्‍त तिवारी का रहा है। तिवारी का बेटा होने का दावा करने वाले रोहित शेखर और उनकी मां उज्ज्वला के रिश्‍तों की असलियत जानने के लिए डीएनए मिलान किया गया था और लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ था कि नारायण दत्त तिवारी ही रोहित शेखर के बायोलॉजिकल पिता और उज्ज्वला बायोलॉजिकल मां हैं।
दरअसल चिकित्‍सा और अपराध शास्‍त्र में तो डीएनए का मिलान करने से उलझी हुई गुत्थियां सुलझ जाती हैं लेकिन राजनीति की तासीर बहुत अलग है। यहां अव्‍वल तो डीएनए का मिलान संभव ही नहीं हो पाता और यदि कोई जांच कर भी ले तो उसके नतीजे इतने भ्रामक और चौंकाने वाले होते हैं कि आप निश्चित तौर पर किसी निष्‍कर्ष तक नहीं पहुंच सकते।
जैसे बिहार का ही मामला ले लीजिए। जिन नीतीश कुमार के डीएनए पर मोदीजी ने संदेह जताया था, बिहारी अस्मिता को लेकर प्रधानमंत्री से लड़ने वाले वही नीतीश कुमार बाद में ‘भाजपा कुल’ का हिस्‍सा हो गए। अब आप जाकर पूछिए जरा कि भाई जिस डीएनए की खोट या खरेपन की आपको तलाश थी इन दिनों वह कहां है, तो आपको जवाब देने वाला कोई नहीं मिलेगा।
उत्‍तरप्रदेश में सपा और बसपा ने विधानसभा चुनाव अलग अलग लड़ा, लेकिन हारने के बाद, उपचुनावों में इन दोनों परस्‍पर विरोधी कुलशील वाले कुनबों ने अपने डीएनए का वैसे ही मिलान करवा लिया जैसा कोई ज्‍योतिषी शादी से पहले लड़के व लड़की के गुण मिलाता है। शादी का रिश्‍ता तय करते समय यह लगभग असंभव सा ही होता है कि पूरे के पूरे 36 गुण मिल जाएं, लेकिन राजनीति में यह पूरी तरह संभव है कि एक दूसरे के बीच 36 का आंकड़ा रखने वालों की कुंडली के भी छत्‍तीसों गुण एक झटके में मिल जाएं।
ना..ना.. मैं मध्‍यप्रदेश के बारे में ऐसा कोई अनुमान लगाने नहीं जा रहा, पर मजे लेने के लिए आपको हाल ही का वो फोटो देखने की सलाह जरूर देने जा रहा हूं जिसमें कुछ दिन पहले तक ‘लायक और नालायक’ के खेमों में बंटे अपने प्रदेश के दो सरदार, एक सार्वजनिक मंच पर हंसते मुसकुराते गले मिल रहे हैं… उस फोटू को देखकर आप यदि यह जांच सकें कि कौन किस डीएनए वाला है तो मुझे जरूर बताइएगा…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here