गुरुवार को बड़ी खबर के रूप में करीब करीब दिन भर यह खबर चलती रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद में देश की पहली बुलेट ट्रेन का शिलान्यास किया। अहमदाबाद-मुंबई के बीच चलने वाली इस बुलेट ट्रेन की नींव रखने के बाद मोदी ने गर्व से कहा कि भारत को यह ट्रेन एक तरह से मुफ्त में मिलेगी। और मुफ्त का यह गणित समझाते हुए उन्होंने बताया कि अगर हम इसके लिए कर्ज लेने बैंकों के पास जाते तो वे हमसे 6 या 7 फीसदी ब्याज लेते लेकिन हमारे दोस्त जापान ने हमें 88 हजार करोड़ रुपए का कर्ज सिर्फ 0.1 फीसदी ब्याज पर दे दिया है।
जिस समय प्रधानमंत्री खुशी खुशी मुफ्त में मिलने वाली बुलेट ट्रेन का बखान कर रहे थे, उसी समय टीवी चैनलों की वेबसाइट और इंटरनेट पर चुपचाप एक खबर कहीं कोने में सुबक रही थी, जो बताती थी कि देश में थोक महंगाई की दर पिछले चार महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इस दौरान पेट्रोल और प्याज दोनों महंगे हुए हैं। प्याज की थोक महंगाई दर अगस्त में 3.24 फीसदी हो गई जो जुलाई में 1.88 फीसदी थी। जबकि पेट्रोल की महंगाई दर अगस्त में 24.55 फीसदी पहुंच गई जो जुलाई में 9.60 फीसदी थी।
दरअसल दूसरे मामलों में लोगों को उलझाए रखने में माहिर हो चली यह सरकार बढ़ती महंगाई के मुद्दे को लगातार अनदेखा कर रही है। जबकि 2014 के चुनाव के दो प्रमुख मुद्दे महंगाई और भ्रष्टाचार ही थे। खुद नरेंद्र मोदी अपनी चुनावी सभाओं में यह ऐलान किया करते थे कि देश की जनता को महंगाई की मार से बचाना उनका प्राथमिक लक्ष्य होगा। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा।
हाल ही में यह मुद्दा उस समय उछला जब मुंबई में पेट्रोल 80 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गया। देश के विभिन्न भागों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में पिछले कुछ महीनों में ही बेतहाशा इजाफा हुआ है। बाजार के जानकारों के अनुसार पेट्रोल-डीजल की कीमतें 2014 के बाद अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई हैं। और यह ऐसे समय में हो रहा है जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें लगातार घटी हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये कीमतें पिछले तीन साल के दौरान 50 फीसदी से ज्यादा कम हुई हैं, लेकिन इस दौरान भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगातार इजाफा हुआ है। 13 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 3093 रुपए प्रति बैरल थी जबकि 2014 में एक बैरल कच्चा तेल 6 हजार रुपए में मिलता था। लेकिन सरकारों की जनविरोधी नीतियों के चलते कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी का फायदा ग्राहकों को नहीं मिला है।
कीमतों में बढ़ोतरी के मुद्दे के साथ ही इसके गणित को समझना भी बहुत जरूरी है। दरअसल इंडियन ऑयल,हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम कंपनियां कच्चे तेल को रिफाइन करती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक ये कंपनियां एक लीटर कच्चे तेल के लिए 21.50 रुपए का भुगतान करती हैं।
इसके बाद एंट्री टैक्स, रिफाइनरी प्रोसेसिंग खर्च, लैंडिंग कॉस्ट और अन्य ऑपरेशनल खर्चों को मिला दें तो एक लीटर कच्चा तेल रिफाइन करने में 9.34 रुपए खर्च होते हैं। यानी एक लीटर पेट्रोल ऑयल कंपनियों को करीब 31 रुपए में पड़ता है। ऐसे में यदि ग्राहकों को पेट्रोल 80 रुपए लीटर तक के दाम पर मिल रहा है तो जाहिर है उस पर भारी टैक्स लिया जा रहा है।
दरअसल तैयार पेट्रोल पर केंद्र व राज्य सरकार दोनों ही भारी टैक्स वसूलती हैं। और जिस चीज की लागत 31 रुपए लीटर है उस पर आपकी जेब से टैक्स के रूप में लगभग 49 रुपए लिए जा रहे हैं। मतलब सोने से बनवाई महंगी वाली कहावत यहां चरितार्थ हो रही है। 2014 से अब तक केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी 126 फीसदी बढ़ाई है जबकि डीजल पर लगने वाली ड्यूटी में 374 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ये दाम कम हो सकते थे यदि पेट्रोल डीजल को भी जीएसटी के दायरे में ले आया जाता लेकिन सरकारों ने बड़ी चालाकी से इन्हें जीएसटी के बाहर करवा दिया।
हमारा मध्यप्रदेश तो इस गोरखधंधे में और भी चार कदम आगे है। यहां पेट्रोल पर 31 फीसदी टैक्स के अलावा प्रति लीटर चार रुपए अतिरिक्त शुल्क लिया जा रहा है, वहीं डीजल पर 27 फीसदी टैक्स के अलावा प्रति लीटर डेढ़ रुपए अतिरिक्त चार्ज वसूला जा रहा है। ये देश में सर्वाधिक है। कुछ माह पहले टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक खबर प्रकाशित की थी जो कहती थी कि इतने भारी भरकम टैक्स का बोझ केवल ग्राहकों को ही नहीं उठाना पड़ रहा बल्कि उससे राज्य के खजाने को भी नुकसान पहुंच रहा है।
खबर के मुताबिक मध्यप्रदेश के पड़ोसी राज्यों ने अपने यहां पेट्रोल डीजल की दरें कम कर रखी हैं इसलिए मध्यप्रदेश में बाहर से आने वाले वाहन वहां से ईंधन भरवाकर राज्य में प्रवेश करते हैं और यहां से निकलने वाले वाहन राज्य की सीमा समाप्त होने के बाद ही ईंधन भरवाते हैं। राजस्थान और उत्तरप्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में तो बाकायदा मध्यप्रदेश से पांच या सात रुपए प्रतिलीटर दाम कम होने के बोर्ड लगाकर वाहन चालकों को आकर्षित किया जा रहा है।
आपको याद होगा कि एक समय ऐसा भी था जब पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 50 पैसे या एक रुपए की भी बढ़ोतरी होने पर हायतौबा मच जाती थी। राजनीतिक पार्टियां उसके खिलाफ मोर्चे निकालने लगती थीं। लेकिन आज कीमतें तीन साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाने के बावजूद इस तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।
सच में, देश में विपक्ष यदि कमजोर हो तो उसका खमियाजा भी जनता को ही भुगतना पड़ता है।