भारतीय जनता पार्टी मन ही मन इस बात पर सोच जरूर रही होगी कि भोपाल लोकसभा सीट के लिए उसने कांग्रेस के प्रत्याशी, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के मुकाबले प्रज्ञा ठाकुर को उतारकर कहीं कोई गलती तो नहीं कर दी। भाजपा ने दिग्विजयसिंह के खिलाफ प्रज्ञा ठाकुर का चयन बहुत सोच समझकर किया था। उन्हें एक राजनेता के रूप में नहीं बल्कि कट्टर हिंदू चेहरे के रूप में दिग्विजयसिंह के सामने लाया गया था।
प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी तय करने से पहले भाजपा के बड़े से बड़े नेता जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान से लेकर केंद्रीय मंत्री उमा भारती तक शामिल हैं, भले ही यह कहते रहे हों कि दिग्विजयसिंह को तो पार्टी का कोई साधारण सा कार्यकर्ता भी हरा सकता है, लेकिन उनके मन में इस बात का खुटका जरूर रहा होगा कि दिग्विजयसिंह वैसे उम्मीदवार नहीं हैं जिन्हें यूं ही फूंक से उड़ा दिया जाए।
इसीलिए भोपाल के मतदाताओं और उनसे भी ज्यादा मीडिया को लंबा इतजार कराने और तमाम तरह की कयासबाजियों को हवा देने के बाद प्रज्ञा ठाकुर का नाम घोषित किया गया। रणनीति यह थी कि दिग्विजयसिंह को हिंदू विरोधी या मुसलिमपरस्त साबित करते हुए (जैसाकि भाजपा पहले से करती भी आई है) भोपाल के मुकाबले को हिंदू और हिंदू विरोधी का मुकाबला बना दिया जाए।
लेकिन प्रज्ञा ठाकुर ने अपनी उम्मीदवारी घोषित होते ही जिस तरह के बयान दिए हैं, उसने भाजपा को हिला दिया है। पहले उन्होंने मुंबई हमले में शहीद हुए पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की मृत्यु को अपने शाप का परिणाम बताया और शनिवार को उन्होंने सगर्व इस बात का ऐलान किया कि बाबरी ढांचा गिराए जाने की घटना में वे शामिल थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रज्ञा ने कहा-‘’मैंने ढांचे पे चढ़कर तोड़ा था, मुझे भयंकर गर्व है कि ईश्वर ने मुझे अवसर दिया और शक्ति दी.. और मैंने ये काम कर दिया। अब वहीं राम मंदिर बनाएंगे’’
भाजपा प्रत्याशी के इन बयानों से कांग्रेस अंदर ही अंदर खुश है क्योंकि इन बयानों की न सिर्फ पूरे देश में आलोचना हुई है बल्कि दोनों बयानों पर चुनाव आयोग ने प्रज्ञा ठाकुर को आचार संहिता के उल्लंघन का नोटिस जारी किया है। हेमंत करकरे वाले बयान में तो भाजपा की ऐसी किरकिरी हुई कि पार्टी ने आनन फानन में उससे दूरी बनाने में ही भलाई समझी और खुद प्रज्ञा से भी उसे वापस करवाया।
दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजयसिंह ने जो रणनीति बनाई है वह प्रज्ञा ठाकुर या धार्मिक मसलों पर चुप रहने की है। हालांकि शनिवार को वे खुद भी यह बयान देकर विवाद में आ गए कि हिन्दुत्व शब्द उनकी डिक्शनरी में नहीं है। लेकिन ऐसा लगता है कि दिग्विजयसिंह को अपनी इस चूक का तुरंत अहसास हो गया और उन्होंने हाथ के हाथ अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए तीन ट्वीट किए।
दिग्विजयसिंह ने कहा-‘’मैं हिंदू धर्म को मानता हूँ, जो हज़ारों सालों से दुनिया को जीने की राह सिखाता आया है। मैं अपने धर्म को हिंदुत्व के हवाले कभी नहीं करूँगा, जो केवल और केवल राजनीतिक सत्ता पाने के लिए संघ का षड़न्त्र है। मुझे अपने सनातन हिंदू धर्म पर गर्व है जो वसुधैव कुटुम्बकम की बात कहता है।‘’
‘’संघ का हिंदुत्व जोड़ता नहीं, तोड़ता है। अपने धर्म का राजनैतिक अपहरण मैं कभी नहीं होने दूँगा। हमारे लिए हिंदू धर्म आस्था का विषय है, भगवान से हमारा निजी रिश्ता है।‘’
‘’मेरी हिंदू धर्म मेरी आस्था है। इसीलिए मैंने अपनी नर्मदा परिक्रमा का प्रचार नहीं किया, राघोगढ़ मंदिर की परम्पराओं का कभी प्रचार नहीं किया, दशकों गोवर्धन परिक्रमा और पंढरपुर दर्शन का प्रचार नहीं किया। भाजपा के लोग कब से मेरे और ईश्वर के बीच आ गए, सर्टिफ़िकेट देने वाले एजेंट बन गए?
उसके बाद रविवार को दिग्विजयसिंह ने भोपाल का ‘विजन डाक्यूमेंट’ जारी करते हुए अपनी चुनावी रणनीति को फिर से हिन्दू और हिन्दुत्व की बहस से बाहर खींचते हुए विकास के एजेंडे पर लाने की कोशिश की।
दरअसल भोपाल का चुनाव देश की राजनीतिक दशा और दिशा को निर्धारित करने वाला चुनाव बन गया है। जब से नरेंद्र मोदी की सरकार आई है उसने अपने राजनीतिक और गैरराजनीतिक कई प्रयोगों के लिए मध्यप्रदेश को एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में वह प्रज्ञा ठाकुर के माध्यम से भी ऐसा ही प्रयोग करने जा रही है।
संयोग से या जाने अनजाने कांग्रेस भी दिग्विजयसिंह के बहाने एक प्रयोग कर रही है कि जब राजनीति में हिन्दुत्व या हिन्दूवाद मुकाबिल हो तो उससे निपटने का कौनसा रसायन तैयार किया जाए, जिसकी मतदाताओं में अनुकूल प्रतिक्रिया हो। दिग्विजयसिंह अभी तक भाजपा या संघ के हिन्दू कार्ड की काट अपने तेजाबी बयानों से करते आए हैं, लेकिन इस बार उन्होंने अपने चिरपरिचित आवरण को उतारकर विकास का अंगवस्त्र पहन लिया है। उन्होंने साध्वी की उम्मीदवारी का स्वागत ही इस ट्वीट के साथ किया कि- ‘’मैं माँ नर्मदा से साध्वी जी के लिए प्रार्थना करता हूँ और नर्मदा जी से आशीर्वाद माँगता हूँ कि हम सब सत्य, अहिंसा और धर्म की राह पर चल सकें।‘’
अब स्थिति यह है कि प्रज्ञा भारती जहां भोपाल के चुनाव को धर्मयुद्ध बता रही हैं वहीं दिग्विजयसिंह इसे विकास के अवसर के रूप में स्थापित करने की कोशिश में हैं। दिग्विजयसिंह को पता है कि वे यदि हिंदू और हिन्दुत्व के पाले में गए तो उलझ जाएंगे। उसी तरह प्रज्ञा ठाकुर की कमजोरी यह है कि वे हिंदू या हिन्दुत्व के इर्दगिर्द ही घूम सकती हैं। उनकी लाइन बहुत साफ है। उन्होंने अपनी उम्मीदवारी घोषित होने के दिन से ही यह बता दिया है कि वे किस हथियार से अपना युद्ध लड़ने वाली हैं। उधर दिग्विजयसिंह भी इस बात का पूरा ध्यान रख रहे हैं कि वे चुनावी बहस को विकास तक केंद्रित रखें, लेकिन अपनी हिंदू पहचान को भी उजागर करते रहें।
मजे की बात यह है कि चंदन और कुंकुम का तिलक फिलहाल तो दोनों उम्मीदवारों के ललाट पर दिखाई दे रहा है…