हर बार ही ऐसा नहीं होता कि नक्कारखाने में तूती की आवाज दब ही जाए। कभी कभी यह भी मान लेना चाहिए कि तूती की किस्मत यदि अच्छी है, तो हो सकता है उसकी आवाज भी नगाड़ों के भारी भरकम शोर के बावजूद सुन ली जाए। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में तूती की आवाज सुन लिए जाने के संकेत मिल रहे हैं और यदि यहां यह आवाज सुन ली गई तो हो सकता है प्रदेश के बाकी शहरों को भी इसका लाभ मिल जाए।
मामला शहरों के मास्टर प्लान से जुड़ा है। नवंबर के अंतिम सप्ताह में मैंने इसी कॉलम में दो दिन लगातार (24 व 25 नवंबर को) भोपाल के मास्टर प्लान को लेकर सांसद आलोक संजर की अध्यक्षता वाली समिति के समक्ष हुई जनसुनवाई में उठे मुद्दों पर अपनी बात रखी थी। लोगों के सुझाव एवं आपत्तियां जानने के लिए हुई इस सुनवाई में आवासीय बस्तियों के बीच बन रहे अस्पतालों और नर्सिंग होम्स का मुद्दा सबसे ज्यादा छाया रहा था।
बस्तियों के बीच अस्पताल और नर्सिंग होम्स का निर्माण बहुत संवेदनशील मामला है। यह लोगों की जरूरत भी हैं और मुसीबत का कारण भी। इसलिए इनके बारे में कोई भी फैसला बहुत सोच विचारकर लिया जाना जरूरी है। योजनाकार भी इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं, एक वर्ग का कहना है कि वाणिज्यिक गतिविधियों के कारण आवासीय क्षेत्रों की शांति और व्यवस्था भंग होती है।
जबकि दूसरा वर्ग मानता है कि आवासीय क्षेत्र लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद इनके लिए जरूरी वाणिज्यिक सुविधाएं आसपास विकसित नहीं हो रही हैं। ऐसी ही सुविधाओं में अस्पताल और नर्सिंग होम्स सबसे ऊंची पायदान पर आते हैं क्योंकि जहां आदमी रहेंगे वहां उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत भी होगी। मास्टर प्लान हों या शहर के विस्तार और विकास की अन्य योजनाएं, आमतौर पर उनमें ऐसी अनिवार्य जरूरतों के बारे में ध्यान ही नहीं रखा जाता।
कायदे से दोनों ही पक्ष अपनी अपनी जगह गलत नहीं हैं। लेकिन सबसे पहला मुद्दा यह है कि यदि कोई इलाका आवासीय है तो उसका बुनियादी स्वरूप रिहायशी ही रहना चाहिए। वहां यदि अन्य सुविधाएं विकसित होने की बात भी है तो वे वहां रहने वाले लोगों के सुखाधिकार का अतिक्रमण करके नहीं बनाई जानी चाहिए। यह स्वीकार्य नहीं हो सकता कि सड़क तो बनी हो कॉलोनी या बस्ती के लोगों के आने जाने के लिए, लेकिन वहां चलने वाली वाणिज्यिक गतिविधियों (फिर भले ही वे अस्पताल या नर्सिंग होम्स ही क्यों न हों) के कारण सारे रास्ते वाहनों के कारण जाम हो जाएं। घरों के सामने पार्क होने वाले वाहनों के कारण लोगों का घर से निकलना ही दूभर हो जाए।
मैंने इसी कॉलम में 25 नवंबर को सुझाव दिया था कि ‘’ऐसी वाणिज्यिक अनुमतियां बहुत सोच समझकर ही दी जानी चाहिए। जब तक पर्याप्त पार्किंग की सुविधा न हो ऐसी अनुमति बिलकुल न दी जाए। फिर भी यदि योजनाकारों या सरकार पर वोट का या नोट का कोई दबाव अथवा प्रभाव है, तो कुछ पाबंदियों और शर्तों के साथ ही ऐसी इजाजत मिलनी चाहिए।‘’
मैंने सुझाया था कि- ‘’सबसे पहले तो यह अनिवार्य कर दिया जाए कि संबंधित अस्पताल या नर्सिंग होम अपने यहां आने वाले वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था खुद करेगा। इसके लिए अनुमति वाले भूखंड पर ही उसे पार्किंग भी बनाना होगा। जैसे यदि 4000 हजार वर्गफुट पर कोई नर्सिंग होम बनाना चाहता है तो उसका 50 प्रतिशत हिस्सा वह पार्किंग के लिए अलग से रखे। यदि जमीन को बांटना संभव न हो तो वह बहुमंजिला इमारत बनाए और नीचे की कुछ मंजिलें पार्किंग के लिए छोड़ते हुए उसके ऊपर अस्पताल बनाए।‘’
‘’यदि रसूखदार लोग इसके लिए भी राजी न हों और अपनी कमाई के लिए सड़कों से बलात्कार पर आमादा ही हो जाएं तो अस्पताल या नर्सिंग होम्स में आने वालों वाहनों के एवज में संचालकों से भारी भरकम राशि पार्किंग शुल्क के रूप में वसूल की जाए। वह राशि स्थानीय रहवासी समिति को सौंपी जाए ताकि समिति उस राशि से मोहल्ला सुधार का कोई बुनियादी काम कर सके। यह काम वाहनों को नियंत्रित करने या व्यस्थित ढंग से पार्क करवाने वाले कर्मचारियों की नियुक्ति जैसा भी हो सकता है।‘’
खुशी की बात है कि संबंधित समिति ने इन सुझावों को विचार में लिया है। मीडिया रिपोर्ट कहती हैं कि मास्टर प्लान-2005 के संशोधन पर आपत्तियों की सुनवाई के लिए बनाई गई सांसद की अध्यक्षता वाली समिति के सदस्य इस पक्ष में हैं कि ‘’पुराने जितने भी नर्सिंग होम और अस्पताल संचालित हो रहे हैं, उनके प्रथम तल में पार्किंग की व्यवस्था कराई जाए। जो भी नए अस्पताल बनेंगे उनको पहले पार्किंग की व्यवस्था करने के लिए निर्देशित किया जाए। सरकार एक किलोमीटर के अंदर पार्किंग की व्यवस्था कराएगी।‘’
खबरों के मुताबिक जल्दी ही इस संबंध में प्रस्ताव बनाकर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को दिया जाएगा। वर्तमान में भोपाल शहर के आवासीय क्षेत्रों में लगभग 200 नर्सिंग होम्स चल रहे हैं। इनमें से 80 प्रतिशत के पास पार्किंग की सुविधा नहीं है। मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं है। यदि मेडिकल सुविधाओं के आधार पर 5 बेड, 10 बेड, 20 बेड जैसा वर्गीकरण किया गया तो पार्किंग व मेडिकल वेस्ट डिस्पोजल की सुविधाएं भी उसी हिसाब से तय की जा सकेंगी। यही पैमाना शहर में चल रहे नर्सिंग होम्स का भविष्य तय करेगा।
समिति के सदस्यों ने मेडिकल सुविधाओं के लिए 4000 वर्गफीट क्षेत्र की अनिवार्यता जारी रखने को कहा है। इसमें बदलाव नहीं होगा। नर्सिंग होम खोलने के लिए जहां बेड की संख्या, आबादी आदि के आधार पर जमीन वर्गीकृत की जाएगी, वहीं क्लीनिक, पैथोलॉजी लैब,डिस्पेंसरी, इन्वेस्टीगेशन सेंटर आदि के लिए नर्सिंग होम एक्ट और कोर्ट रूलिंग को आधार बनाया जाएगा। नर्सिंग होम व मैरिज गार्डन के लिए आबादी का दायरा भी तय होगा।
भोपाल में यदि इस तरह के कोई मापदंड तय हो जाते हैं तो फिर निश्चित है कि इस प्रयोग का दायरा केवल राजधानी तक ही सीमित नहीं रहेगा। प्रदेश के अन्य बड़े शहरों में होने वाली विकास गतिविधियों को इससे एक नई दिशा मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि भोपाल के फैसले जल्द ही अमली जामा पहनेंगे…