रचना संसारहेडलाइन शुभरात्रि शायरी By मध्यमत - 0 71 FacebookTwitterPinterestWhatsApp ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं और क्या जुर्म है पता ही नहीं इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं