भोपाल, अप्रैल 2015/ पशुपालन मंत्री कुसुम महदेले ने गौ-पालकों और गौ-मालिकों को अपनी गायों का संरक्षण और देख-रेख स्वयं करने की सलाह दी है। कहा है कि गौ-पालक एवं गौ-मालिक अपनी गाय और बछड़ों को गौठान में बाँधकर रखें न कि व्यर्थ यहाँ-वहाँ आवारा घूमने दें। गायों को अपने घरों में स्थान न देकर बाहर छोड़ देना चिंतनीय है। गौ-पालक और गौ-मालिकों को गौ-वंश की महत्ता को समझना चाहिये। हमारे दैनंदिन जीवन और आर्थिक सुधार में गौ-वंश का व्यापक महत्व है। उन्हें गायों के संरक्षण और महत्ता को नजरअंदाज करना समूचे गौ-वंश का अपमान है।
सुश्री महदेले ने कहा कि गाय-बछड़े की सेवा कर उन्हें पोषण-आहार खिलाकर उनका स्वास्थ्य बेहतर किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि गौ-मालिक गाय की सेवा की जिम्मेदारी से दूर क्यों भागते हैं। जब गायों की रक्षा और देखभाल स्वयं गौ-पालक एवं गौ-मालिक करेंगे तो न उनकी हत्या होगी और न तस्करी को प्रोत्साहन मिलेगा। इसीलिये जरूरी है कि गाय को घर में उचित स्थान देकर उनकी अच्छी तरह देखभाल की जाये, न कि आवारा पशु की तरह बाहर खुले में छोड़ा जाये। ऐसी ही प्रेरणा अन्य लोगों को भी दी जाये।
सुश्री कुसुम महदेले ने बताया कि प्रदेश में भारतीय गौ-वंश के संरक्षण एवं संवर्धन के लिये 628 गौ-शाला हैं। इसके अलावा आगर जिले के सालरिया में गौ-अभयारण्य की स्थापना की गई है। गौ-अभयारण्य में 5000 गौ-वंशीय पशु को रखे जाने का इंतजाम है। उन्होंने कहा कि गौ-वंश की रक्षा में शासकीय प्रयास अपने आपमें पूर्ण नहीं हो सकते, जब तक उसमें समाज की सहभागिता न हो। इसके लिये मध्यप्रदेश में गोपाल पुरस्कार और वत्स पालन प्रोत्साहन योजना लागू है। गोपाल योजना में देशी नस्ल की गौ-वंश को को बढ़ावा देने के लिये ब्लॉक, जिला एवं राज्य-स्तर पर प्रतियोगिता का आयोजन कर पशुपालकों को पुरस्कार एवं प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाती है। वत्स पालन योजना में देशी नस्ल की औसत से अधिक दूध देने वाली न केवल गायों के पालकों को प्रोत्साहन राशि दी जाती है, बल्कि उच्च अनुवांशिक गुणों वाले वत्सों के पालन के लिये 2 वर्ष तक सहायता राशि भी दी जाती है। पशुपालकों को बढ़ावा देने के साथ-साथ ये योजनाएँ उच्च अनुवांशिक गुणों के पशुओं की डाटा बेस इकट्ठा करने के लिये भी उत्कृष्ट माध्यम के रूप में काम करती है।