भोपाल। मध्यप्रदेश के वन मंत्री सरताजसिंह ने कहा है कि नीति बनाना महत्वपूर्ण है परन्तु उसका क्रियान्वयन उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वनों को लेकर किए जाने वाले फैसले ऐसे हों कि विकास की गतिविधियां भी होती रहें और वनों पर उनका विपरीत असर भी न हो। कार्यशाला में ठोस निर्णय लेकर उनका मजबूत क्रियान्वयन सुनिश्चित करें ताकि मध्यप्रदेश के वन, विकास का साथ देने के बावजूद संकुचन और विरलेपन से बच सकें। आज भी तकरीबन डेढ़ करोड़ आदिवासियों का जीवन वनोपज पर आधारित है। वनों के बढ़ने से इनके जीवन स्तर में भी सुधार आयेगा। वन मंत्री श्री सरताज सिंह ने ये उद्गार आज यहाँ आर.सी.पी.व्ही. नरोन्हा प्रशासन अकादमी में राज्य-स्तरीय वन वर्धनिक कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता लघु वनोपज संघ अध्यक्ष श्री विश्वास सांरग ने की। प्रमुख सचिव वन श्री देवराज बिरदी, प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री रमेश कुमार दवे, प्रबंध संचालक मध्यप्रदेश लघु वनोपज संघ श्री आर.एस. नेगी भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
वन मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि वन विभाग की कार्ययोजना पहले 30 वर्ष की बनती थी। समय के साथ प्राथमिकताएँ, साधन, संसाधन, कार्य-संस्कृति में परिवर्तन आया है। नई कार्ययोजना में संख्या बढ़ाने के साथ ही स्वस्थ पौधों का रोपण सुनिश्चित करें। जलाऊ लकड़ी के विकल्प के रूप में लेण्टाना के प्रयोग की जानकारी आम लोगों को दें। जानवरों की चराई, सिर बोझा आदि से जंगलों को नुकसान पहुँचता है, इसकी वैकल्पिक व्यवस्था करें।
श्री विश्वास सारंग ने कहा कि ‘वन है तो हम हैं’। भारत में वन संवर्द्धन, संरक्षण संस्कृति से जुड़ा है। प्रमुख सचिव वन श्री देवराज बिरदी ने वन विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों को बधाई देते हुए कहा कि बढ़ते विकास के बावजूद प्रदेश के वन क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में कोई कमी नहीं आई है। विभाग बदलते समय को ध्यान में रखते हुए कार्ययोजना में तकनीकी, अधोसंरचनात्मक, प्रशासनिक कमियों से मुक्त रखने का प्रयास किया जाए।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक श्री आर.के. दवे ने कहा कि वनों का वैज्ञानिक प्रबंधन प्रदेश में 150 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था। आज के परिप्रेक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए वन वर्धनिक प्रणाली को मजबूत करते हुए निवेश के अनुपात में वनों का संवर्द्धन, संरक्षण और गुणवत्तापूर्ण सुधार जरूरी है। कार्यशाला में वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और क्षेत्रीय अधिकारियों ने भाग लिया। डॉ. रामप्रकाश, राज्य वन अनुसंधान संस्थान जबलपुर ने अंत में आभार प्रदर्शित किया।
डेयरी डेवलपमेंट वन विभाग करे
वन मंत्री श्री सरताज सिंह ने कहा कि वन विभाग के पास डेयरी डेवलपमेंट का कार्य होने से वनों के साथ-साथ पशुओं का भी संवर्द्धन होगा। श्री सिंह ने कहा कि वन विभाग के पास जमीन, पानी, चारा और मानव संसाधन उपलब्ध है। जानवरों और लोगों के जंगलों में न जाने से रोपण नष्ट नहीं होगा। फलस्वरूप फॉरेस्ट कवर और वन घनत्व में वृद्धि होगी। ट्रेक्टरों से जुताई होने से संपन्न किसानों ने पशुओं का पालन काफी कम कर दिया है।