भोपाल, सितंबर 2013/ राज्य शासन ने प्रदेश में स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं में विलम्ब में राज्य का हाथ होने की बात को तथ्यों से परे और भ्रामक बताया है। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग से प्राप्त वस्तुस्थिति के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्ग के लिये भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के अंतर्गत की जाती है। यह कार्रवाई भारत सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग म़ंत्रालय व्दारा उक्त अधिनियम में ही की जानी होती है। यह बात नेशनल हाइवे अथारिटी ऑफ इंडिया व्दारा किये जा रहे बी.ओ.टी परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण संदर्भ में भी लागू होती है। राज्य शासन व्दारा इस संबंध में जो भी सहायता अपेक्षित होती है, वह त्वरित रूप से दी जाती है। संबंधित परियोजनाएँ राज्य सरकार की किसी कमी के चलते विलम्बित नहीं हो रही हैं।
केंद्र सरकार द्वारा प्लान में कुल 422 करोड़ 50 लाख रुपये की सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है न कि 479 करोड़ रूपये की। नानप्लान (पी.आर) में 40 करोड़ रूपये की सैद्धांतिक स्वीकृति वार्षिक संधारण मद में दी गई है। राज्य शासन द्वारा 381 करोड़ रूपये के प्राक्कलन स्वीकृति के लिये केंद्र सरकार को भेजे गये हैं। इन प्राक्कलनों में से एक कार्य की भी प्रशासकीय स्वीकृति आज तक केंद्र सरकार द्वारा नहीं दी गई है।
यह स्पष्ट किया जाता है कि केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय राजमार्गों के कार्यों के लिये आयोजना मद में कतिपय चिन्हित कार्यों के लिए सैद्धांतिक स्वीकृति दी जाती है। सैद्धांतिक स्वीकृति प्राप्त होने के बाद इन कार्यों के लिये प्राक्कलन केन्द्र सरकार को प्रशासकीय स्वीकृति के लिये भेजे जाते हैं। प्रशासकीय स्वीकृति प्राप्त होने के बाद इन कार्यों के लिये निविदाएँ आमंत्रित की जाती हैं। यदि निविदा में न्यूनतम प्राप्त निविदा दर, दर सूची से 5 प्रतिशत से अधिक होती है तो पुनः प्राक्कलन को पुनरीक्षित प्रशासकीय स्वीकृति के लिए केन्द्र सरकार को भेजना होता है। अनेक अवसर पर इस प्रकार की पुनरीक्षित स्वीकृति प्राप्त होने तक निविदा की वैधता अवधि समाप्त हो जाती है, जिससे न केवल इन कार्यों पर पुनः निविदा बुलाने पर अधिक दरें प्राप्त होती हैं, बल्कि कार्य में अत्यधिक विलम्ब भी होता है।
इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि कार्यों को स्वीकृत करने की जो व्यवस्था केंद्र सरकार में लागू है, वह अपने आप में विसंगतिपूर्ण है। इससे लगभग यह तय हो जाता है कि इस वर्ष दी गई सैद्धांतिक स्वीकृति पर अगले वर्ष ही कार्य हो पायेगा, क्योंकि अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्ग, नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इण्डिया के पास है तथा इनमें से कुछ मार्ग कुछ समय पूर्व ही राज्य शासन को सौंपे गये हैं। इसलिये इन कार्यों में पूर्व से उपलब्ध प्रशासकीय स्वीकृति लगभग नगण्य है। जहाँ तक 46 करोड़ 71 लाख रूपये खर्च करने का सवाल है, वह पिछले वर्ष की स्वीकृति के विरूद्ध है। इस वर्ष जो सैद्धांतिक स्वीकृति 479 करोड़ रूपये की बतलाई गयी है, उसके विरूद्ध एक रूपये की स्वीकृति भी केंद्र शासन से प्राप्त नहीं हुई है। जहाँ तक मेंटेनेंस एवं आकस्मिक खर्च का सवाल है इससे संबंधित राशि वित्तीय वर्ष के अंत तक आवश्यक रूप से खर्च कर ली जायेगी। इसके अतिरिक्त भी यदि राशि राज्य शासन को इस मद में दी जाती है तो वह भी खर्च कर ली जायेगी।
इस संबंध में महत्वपूर्ण यह भी है कि भारत सरकार की जटिल स्वीकृति प्रक्रिया के कारण ही राज्य सरकार को अपने स्वयं के स्त्रोतों से 297 करोड़ रूपये की स्वीकृति राष्ट्रीय राजमार्गों के संधारण के लिये देना पड़ी है। इसमें से इस मद में इस वित्तीय वर्ष में 93 करोड़ रूपये का व्यय किया गया है। संभवतः देश के किसी भी प्रदेश में एक वित्तीय वर्ष में इतनी अधिक राशि राज्य सरकार द्वारा नहीं दी गयी है।
इसी तरह केंद्रीय सड़क निधि में जो भी राशि राज्य सरकार को दी जाती है वह एक निश्चित फार्मूले के आधार पर राज्य शासन को प्राप्त होने वाले अंश के अनुरूप दी जाती है। इस मद में राज्य शासन के हिस्से में 178 करोड़ 87 लाख रूपये जून, 2013 तक प्राप्त हुए हैं। यह राशि वर्ष 2012-13 में राज्य सरकार द्वारा किये गये व्यय के विरूद्ध दी गई है। वस्तु-स्थिति यह है कि वर्ष 2012-13 में 290 करोड़ रूपये का व्यय किया गया है जिसके विरूद्ध 178 करोड़ 87 लाख रूपये प्राप्त हुए हैं। शेष 111 करोड़ की राशि राज्य सरकार द्वारा अपने स्त्रोतों से व्यय की गयी है।
राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 75 एक्सटेंशन सीधी-सिंगरोली के रख-रखाव का काम भी पूरी पारदर्शिता से नियमानुसार किया गया है। जहाँ तक सीधी संभाग में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों के निलम्बन का प्रश्न है, यह कार्यवाही वर्ष 2010-11 में स्वीकृत कुछ कार्यों की गुणवत्ता में कमी पाये जाने के कारण की गयी है।