भोपाल, दिसंबर 2012/ मध्यप्रदेश सरकार वर्ष 2012 के दौरान मछुआरों के हितों के प्रति विशेष रूप से तत्पर रही। इस दौरान अनेक ऐसे फैसले लिये गये, जिनसे हजारों मछुआरों का भविष्य जुड़ा हुआ है। साल की शुरूआत फरवरी में ही मत्स्य उत्सव-2012 का आयोजन कर मछुआरों के संबंध में अनेक निर्णय लिये गये। प्रदेश के मछुआरों के लिए रोजगार बढ़ाने के उपायों पर मत्स्य-उत्सव और मछुआ पंचायत में खुलकर चर्चा हुई। मत्स्य-उत्सव का आयोजन भोपाल स्थित लाल परेड मैदान पर 4 से 6 फरवरी तक हुआ।

मछुआ पंचायत में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मछली-पालन विभाग का नाम बदलकर मछुआ कल्याण एवं मत्स्य-विकास विभाग करने की घोषणा की। उनकी घोषणा के पालन में ही मछुआ कल्याण बोर्ड का गठन हुआ। इसी तरह पंजीकृत 80 हजार मछुआरों को एक प्रतिशत ब्याज पर ऋण, सिंघाड़ा, खरबूज और कलिंदा का उत्पादन बोर्ड के दायरे में लाना, अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति मत्स्य सहकारी समितियों की तरह अन्य समितियों को वित्तीय सहायता, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय, 2000 मछुआ आवासों का निर्माण, मत्स्य-विक्रय स्थल, जलाशय के समीप लेंडिंग सेंटर, मछुआरों को क्रेडिट-कार्ड, मछलियों की शासकीय दर बढ़ाने संबंधी आदि महत्वपूर्ण घोषणाएँ की गईं। मत्स्य-उत्सव में रंगीन मछलियों के संसार को भी लोगों ने देखा और जाना।

राज्य सरकार ने मछली-पालन और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री मत्स्य-विकास पुरस्कार योजना भी इसी साल प्रारंभ की। जुलाई में आयोजित मत्स्य-दिवस पर श्रेष्ठ कार्य करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को पुरस्कृत भी किया गया।

मछली उत्पादन में वृद्धि का एक अध्याय राजघाट जलाशय से भी शुरू हुआ। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीच हुए एमओयू के बाद राजघाट जलाशय से मत्स्याखेट और मछली के विक्रय का कार्य जनवरी, 2012 से शुरू हुआ। राज्य सरकार ने अवैध रूप से मछली पकड़ने पर रोक लगाने के लिए ‘‘अवैधानिक मत्स्याखेट की रोकथाम प्रोत्साहन योजना’’ भी इसी साल शुरू की।

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