भोपाल, अगस्त 2013/ राज्य शासन द्वारा खेती को लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिये पिछले नौ वर्ष में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ अर्जित की गई हैं। किसानों के हित में त्वरित निर्णय लेने के लिये कृषि केबिनेट का गठन किया गया, जिसमें कृषि और कृषि से जुड़े सभी विभाग से संबंधित फैसले लिये जाते हैं। किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण उपलब्ध करवाया गया। अच्छे बीज और खाद की अग्रिम व्यवस्था कर किसानों को समय पर आदान सामग्री उपलब्ध करवायी गयी।
किसानों को अपनी उपज की बिक्री के लिये भटकना न पड़े, इसके लिए बेहतर और सुविधाजनक उपार्जन व्यवस्था की गई। गेहूँ पर 150 रुपये और धान पर 100 रुपये प्रति क्विंटल बोनस समर्थन मूल्य के ऊपर प्रदान किया गया। मध्यप्रदेश में समग्र कृषि उत्पादन, जो वर्ष 2002-03 में 142.45 लाख मीट्रिक टन था, वह वर्ष 2012-13 में बढ़कर 390.93 लाख मीट्रिक टन हो गया। गेहूँ, धान, सोयाबीन, चना, सरसों आदि प्रमुख फसलों की उत्पादन-उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
गेहूँ उत्पादन के क्षेत्र में मध्यप्रदेश देश में तीसरे स्थान पर पहुँच गया है। प्रदेश पूर्व से ही सोयाबीन, चना, दलहन और तिलहन में देश में प्रथम और अरहर, मसूर में द्वितीय स्थान पर है। इस वर्ष मानसून की अच्छी वर्षा होने से खरीफ-रबी फसलों के उत्पादन में वृद्धि की संभावनाएँ हैं। किसानों के लिये रबी सीजन के लिये भी खाद-बीज की पर्याप्त व्यवस्था की गई है।
प्रदेश की वर्ष 2011-12 की कृषि विकास दर 18 प्रतिशत से अधिक रही। वर्ष 2012-13 में भी 13 प्रतिशत से अधिक कृषि विकास दर प्राप्त करने में सफलता पायी है।
प्रदेश में जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिये शासन द्वारा जैविक कृषि नीति बनाई गई है। जैविक खेती में मध्यप्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है। जैविक खेती को एक मिशन के रूप में गति प्रदान करने के लिये ‘मध्यप्रदेश राज्य जैविक खेती विकास परिषद्” का गठन स्वशासी संस्था के रूप में किये जाने का निर्णय लिया गया है।