भोपाल, मार्च 2013/ राज्य शासन ने प्रदेश की गौण खनिज खदानों के संबंध में प्रचलित मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 में पर्यावरण सुरक्षा तथा खनिजों के अवैध परिवहन पर प्रभावी रोक लगाने की दृष्टि से संशोधन किया है। पूर्व में नियमों में शासकीय निर्माण कार्य के लिये तथा निजी भूमि स्वामियों को उत्खनन अनुज्ञा दिये जाने का प्रावधान था। वर्तमान संशोधन के पश्चात अन्य व्यक्तियों को भी उत्खनन अनुज्ञा दिये जाने का प्रावधान किया गया है। इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी गई है।
संचालक भौमिकी तथा खनिकर्म व्ही.के. आस्टिन ने बताया कि इस संशोधन में गौण खनिज के उत्खनन पट्टा खदाने, रेत, पत्थर तथा फर्शी पत्थर की नीलाम खदानें अब अनुमोदित खनन योजना तथा पर्यावरण प्रबंध योजना प्राप्त होने के बाद ही आवंटित की जायेंगी। पाँच हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल की ये खदानें भारत सरकार पर्यावरण तथा वन मंत्रालय की अधिसूचना 24 सितम्बर, 2006 के तहत पर्यावरण अनुमति प्राप्त होने के पश्चात ही स्वीकृत किये जाने के संशोधन किये गये हैं।
खनन योजना तैयार करने के लिये इन नियमों के तहत योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को अधिकृत किये जाने का प्रावधान नियमों में किया गया है। इन व्यक्तियों को मान्यता संचालक भौमिकी तथा खनिकर्म द्वारा दी जायेगी। खनन योजना का अनुमोदन संचालक तथा क्षेत्रीय प्रमुख संचालनालय भौमिकी तथा खनिकर्म द्वारा किया जायेगा। पर्यावरण प्रबंध योजना मान्यता प्राप्त व्यक्तियों, जिन्हें संचालक भौमिकी तथा खनिकर्म द्वारा मान्यता दी गई है, द्वारा तैयार की जायेगी। योजना के अनुमोदन के लिये कलेक्टर की अध्यक्षता में जिला-स्तर पर कमेटी गठित की गई है। कमेटी उत्खनन अनुज्ञा के लिये अनुमति भी देगी।
उत्खनन पट्टा की अवधि पूर्व नियमों में 2 से 10 वर्ष निर्धारित थी। यह अवधि विभिन्न खनिजों के लिये अलग-अलग थी। संशोधन के पश्चात खदानों की न्यूनतम अवधि 5 वर्ष तथा अधिकतम अवधि 10 वर्ष निर्धारित की गई है। इस अवधि के मध्य की अवधि के लिये यदि कोई आवेदन प्राप्त होता है, तब आवेदित अवधि के लिये भी उत्खनन पट्टा स्वीकृत किया जा सकेगा। प्रदेश में उद्योग स्थापित हो सकें, इसके लिये नीलाम खदानें भी 5 वर्ष की अवधि के लिये दी जायेंगी, परंतु फर्शी पत्थर की नीलाम खदानों में कटिंग-पालिशिंग उद्योग तथा पत्थर खदानों में क्रेशर की स्थापना किये जाने पर इसकी अवधि 10 वर्ष तक बढ़ाये जाने का प्रावधान किया गया है।
उत्खनन पट्टा नवीनीकरण के लिये पूर्व में मूल पट्टे की अवधि समाप्ति के एक वर्ष पूर्व नवीनीकरण आवेदन प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य था। यदि पट्टेदार द्वारा इस अवधि में आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जाता था तो विलम्ब से प्रस्तुत आवेदनों पर विलम्ब शुल्क माफ किये जाने का कोई प्रावधान नहीं था। वर्तमान में किये गये संशोधन के पश्चात यह प्रावधान किया गया है कि 1000 रुपये प्रतिमाह अर्थदण्ड आरोपित कर नवीनीकरण के आवेदनों का निराकरण किया जा सकेगा। उत्खनन पट्टा के लिये न्यूनतम एक हेक्टेयर तथा अधिकतम 50 हेक्टेयर दिये जाने का प्रावधान नियमों में किया गया है। यह भी प्रावधान किया गया है कि एक हेक्टेयर से कम का क्षेत्र उत्खनन के लिये उपलब्ध होता है, तो 200 मीटर की परिधि में स्थित ऐसे छोटे-छोटे क्षेत्रों को मिलाकर समूह में खदान आवंटित की जा सके।
मुरम खनिज खदानों को पूर्व में नीलामी के माध्यम से आवंटित किये जाने का प्रावधान था। अब संशोधन के पश्चात इस खनिज की खदानों पर उत्खनन पट्टा दिये जाने का प्रावधान किया गया है। मुरम खनिज की उत्खनन अनुज्ञा शासकीय निर्माण कार्यों के लिये निर्माण विभागों के कार्यपालन यंत्री को स्वीकृति के अधिकार नियमों में प्रावधानित किये गये हैं। इससे निर्माण विभागों में मुरम खनिज की आपूर्ति उनकी आवश्यकता अनुरूप सुगमता से हो सकेगी।
मध्यप्रदेश गौण खनिज नियम, 1996 में अनुवांशिक कुम्हारों, अनुसूचित-जाति/जनजाति के सदस्यों को ईंट, कवेलू, बर्तन निर्माण के लिये इन नियमों से छूट प्राप्त है। इसी प्रकार कृषकों, ग्रामीण कारीगरों, श्रमिकों के घरों तथा कुओं के निर्माण में गौण खनिज के उपयोग पर भी छूट है। उन्हें इस कार्य के लिये किसी प्रकार की कोई रॉयल्टी का भुगतान नहीं करनी होती थी। इसकी आड़ में अनाधिकृत व्यक्तियों (गैर छूट प्राप्त) द्वारा इसके दुरुपयोग की संभावना बनी रहती थी। इसे समाप्त करने के लिये यह प्रावधान किया गया है कि छूट प्राप्त व्यक्तियों को ग्राम-पंचायत, तहसीलदार/नायब तहसीलदार द्वारा प्रमाणीकरण प्राप्त करना होगा। इसके पश्चात कलेक्टर कार्यालय द्वारा गौण खनिजों के परिवहन के लिये रॉयल्टी भुगतान के बगैर अभिवहन पास प्राप्त करना होगा। इन खनिजों का परिवहन प्राप्त अभिवहन पास के माध्यम से ही किया जाना होगा। इस प्रावधान से खनिजों के अवैध परिवहन पर भी प्रभावी रोक लग सकेगी।